आज-कल हम हर शहर की सड़कों पर बढ़ती संख्या में E-रिक्शाएं देख रहे हैं। इन रिक्शाओं को चलाने का काम बिजली की मोटर करती है। मोटर को बिजली मिलती है रिक्शा के साथ लगी हुई बैटरीओं से। इन बैटरीओं को पावर सप्लाय के २३० वॉल्ट वाले सामान्य सॉकेट से चार्ज किया जाता है। पूरे चार्ज पर रिक्शा कुछ ६० कि॰मी॰ जितना चलती है।
आज हम सोलर पैनल्स की मदद से अपनी बिजली भी पैदा कर सकते हैं। सौर्य बिजली हमें कुछ हद तक पावर सप्लाय की बिजली से स्वतंत्र कर देती है। तो सवाल यह होता है कि क्यों ना रिक्शा के ऊपर ही सोलर पैनल लगा कर रिक्शा को चलाया जाय? क्या यह संभव है कि ऐसी सोलर रिक्शा के चलते-चलते उसकी बैटरी चार्ज भी होती जाय? और बार-बार उसे २३० वॉल्ट के सॉकेट तक चार्जिंग के लिए ले जाना ना रहे?
यह सचमुच में एक अच्छा सवाल है। जवाब में हम देखेंगे कि ऐसा क्यों पूरी तरह से संभव नहीं है।
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मान लीजिए कि रिक्शा की मोटर १००० वॉट की है। और मान लीजिए कि पूरे चार्ज पर रिक्शा ६० कि॰मी॰ चलती है। यह आंकडे थोड़े कम-ज़्यादा हो सकते हैं, पर फिर भी इन्हींसे हम एक सादा सा हिसाब लगाएंगे।
रिक्शा की रफ्तार तो शहर में कम-ज़्यादा होती रहती है, पर मान लीजिए कि वह औसतन २० कि॰मी॰ प्रति घंटे की रफ्तार से चलती है। इसका मतलब हुआ कि पूरे चार्ज पर रिक्शा ६०/२० = ३ घंटे चलती है।
अब क्योंकि रिक्शा की मोटर १००० वॉट की है, रिक्शा एक दिन में १००० वॉट x ३ घंटे = ३ किलोवॉट-अवर (kWh) = 3 युनिट जितनी बिजली ऊर्जा का उपयोग करेगी।
मान लीजिए इस रिक्शा की बैटरी को रात में पावर सप्लाय से पूरा चार्ज किया गया था। तो इसका मतलब हुआ कि बैटरी की क्षमता है ३ युनिट, या उससे ज़्यादा। रिक्शा में अगर १२ वॉल्ट की ४ बैटरीयाँ लगी हैं, तो हर बैटरी की रेटिंग हुई ३०००/४८ = लगभग ६० Ah, या उससे ज़्यादा।
वैसे तो बहुत बड़ी बैटरी लगाने से रिक्शा ज़्यादा चलेगी। मगर यह सुझाव पूरी तरह से व्यवहारू नहीं है। क्योंकि बहुत बड़ी बैटरी का वजन भी बहुत बड़ा होगा, जिसके कारण रिक्शा की औसतन रफ्तार कम हो जाएगी।
ऊपर किया हुआ सारा हिसाब उस रिक्शा को लागू होता है जिसमें सोलर पैनल नहीं लगी है। अब हम देखेंगे कि सोलर पैनल लगाने से कितना फ़ायदा हो सकता है।
सोलर पैनल लगभग १० वर्ग मीटर में १००० वॉट = १ किलोवॉट सौर्य बिजली पैदा करती है। E-रिक्शा की जो साइज़ होती है, उसके ऊपर ज़्यादा-से-ज़्यादा कुछ ४ वर्ग मीटर की पैनल लग सकती है। उससे भी बड़ी पैनल लगाने से रिक्शा को चलाने और पार्क करने में दिक्कत आएगी, और पैनल को नुकसान भी हो सकता है।
अपनी ४ वर्ग मीटर की पैनल से रिक्शा को दोपहर में ४०० वॉट बिजली मिलेगी। अगर रिक्शा दोपहर के पूरे ५-६ घंटे धूप में रहे या धूप में चले, तो ४०० वॉट की सोलर पैनल लगभग २ युनिट सौर्य ऊर्जा पैदा करेगी।
ऊपर हमने देखा कि बैटरी की क्षमता है ३ युनिट या ज़्यादा। रिक्शा अगर दोपहर के ५-६ घंटे धूप में रहे या चले, तो उसे अतिरिक्त २ युनिट ऊर्जा मिलेगी। तो रिक्शा की रेंज, याने दूरी काटने की क्षमता, ठीक उसी प्रमाण में बढ़ जाएगी। याने उसकी रेंज हो जाएगी ६० x ५/३ = १०० कि॰मी॰, बशर्ते यह कि दोपहर के पहले बैटरी को पूरा चार्ज कर दिया गया था।
पर हकीकत यह है कि शहर में E-रिक्शा को दोपहर के पूरे 5-6 घंटे धूप में रखना या चलाना संभव ही नहीं है। पतली सड़कें होती हैं, और उनके दोनों बाजू बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स। मान लीजिए कि रिक्शा को ५० प्रतिशत ही धूप मिली। तो उसकी रेंज हो जाएगी ६० x ४/३ = ८० कि॰मी॰। याने की सोलर पैनल से रिक्शा को मिले अतिरिक्त सिर्फ २० कि॰मी॰।
इस गणित से यह संकेत मिलता है, कि सोलर पैनल लगाने से रिक्शा के व्यापार में जो फ़ायदा होता है, वह पैनल की लागत के प्रमाण में काफ़ी मर्यादित है और वह भी इस पर निर्भर करता है कि दोपहर में रिक्शा कितनी धूप खा सकती है।
भविष्य में सोलर पैनल्स की सौर्य ऊर्जा ग्रहण करने की कार्यदक्षता (efficiency) शायद बढ़े। तब हो सकता है कि ऊपर दिये हुए गणित में काफ़ी सुधार आए। पर तब तक तो हमें इसी गणित के आधार पर चलना होगा!
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